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Devnagri Lipi - देवनागरी लिपि की विशेषता, विकास, अर्थ

इस लेख में हम देवनागरी लिपि (Devnagri Lipi) के बारे में विस्तार रूप से जानेंगे। देवनागरी लिपि क्या है, देवनागरी लिपि का विकास, देवनागरी लिपि की विशेषता, देवनागरी लिपि का अर्थ, देनाम करण, गुण, दोष, बनावट, स्वरूप आदि के बारे में विस्तार रूप से पढ़ेंगे। 

Devnagri Lipi

भाषा और लिपि दोनों में एक दूसरे से गहरे सम्बन्ध रखते हैं। लिपि के बिना भाषाएँ जीवित हो सकती हैं। लेकिन भाषा के बिना लिपि का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। देवनागरी लिपि हिन्दी भाषा की एक लिपि है, जो अधिकांश हिन्दू धर्म में प्रयोग में लिया जाता है। इसे धर्मीय ग्रंथों के लिए लिखने का प्रयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि की उत्पत्ति संस्कृत लिपि से हुई है, जो कि भारतीय संस्कृति और धर्म का मुख्य हिस्सा है।

देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा के वर्ण लिखे जाते हैं, जो कि संस्कृत वर्णमाला के आधार पर बने हैं। इसमें कुछ अलग-अलग वर्ण हैं जो संस्कृत में नहीं हैं, लेकिन हिन्दी में हैं। देवनागरी लिपि को संस्कृत लिपि से भिन्न रखने के लिए इसमें विशेष अक्षर बनायें गए हैं। 

Devnagri Lipi - देवनागरी लिपि

देवनागरी लिपि बहुत प्राचीन समय से भाषाओं के लिए प्रयुक्त हो रही है। देवनगरी लिपि को हिंदी भाषा की अधिकृत लिपि बनने में बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। अंग्रेजी की भाषा नीति फ़ारसी की ओर अधिक झुकी हुई थी इसलिए हिंदी को भी फ़ारसी लिपि में लिखने का श्रयंत किया गया था। 

अनुच्छेद 343 (1) में घोषणा की गई : 'संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी'। इस प्रकार, 150 वर्षों (1800.  1949 ई.) के लम्बे समय के बाद देवनागरी लिपि हिंदी भाषा की एकमात्र और अधिक लिपि बन गई।  

देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा के वर्ण लिखे जाते हैं। इसे धर्मीय ग्रंथों के लिए लिखने का प्रयोग किया जाता है और हिन्दू धर्म का मुख्य हिस्सा है। इसमें हिन्दी भाषा के अलग-अलग वर्ण हैं जो संस्कृत में नहीं हैं, हिन्दी में हैं। 

देवनागरी लिपि को संस्कृत लिपि से अलग रखने के लिए विशेष अक्षर शामिल हैं। देवनागरी लिपि का प्रयोग केवल हिन्दू धर्म के अंदर ही नहीं होता, बल्कि यह भारत के अन्य धर्मों और संस्थानों में भी प्रयोग में लिया जाता है। 

देवनागरी लिपि का अर्थ

देवनागरी लिपि हिन्दी भाषा की एक लिपि है। इसका अर्थ होता है "देवताओं की भाषा" या "देवताओं की लिपि"। इसे अधिकांश हिन्दू धर्म में प्रयोग में लिया जाता है, जहां इसे धर्मीय ग्रंथों के लिए लिखने का प्रयोग किया जाता है। देवनागरी लिपि के अलावा, हिन्दी भाषा में अन्य लिपियाँ भी हैं जैसे कि हिंदी लिपि, संस्कृत लिपि आदि।

देवनागरी लिपि का विकास 

1. उच्चरित ध्वनि संकेतो की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति 'भाषा' कहलाती है जबकि लिखित वर्ण संकेतो की सहायता से भाव या विचार की अभिव्यक्ति लिपि। भाषा श्रव्य होती है जबकि लिपि दृश्य। 

2 . भारत की सभी लिपियां ब्राम्ही लिपि से ही निकली है। 

3. ब्राम्ही लिपि का प्रयोग वैदिक आर्यों ने शुरू किया। 

4. ब्राम्ही लिपि का प्राचीनतम नमूना 5वीं सदी B.C का है जोकि बौद्धकालीन है। 

5. गुप्तकाल के आरम्भ में ब्राम्ही के दो भेद हो गए उत्तरी ब्राम्ही और दक्षिणी ब्राम्ही।  दक्षिणी ब्राम्ही से तमिल लिपि/कलिंग लिपि, तेलुगु- कन्नड़ लिपि, ग्रन्थ लिपि (तमिलनाडु), मलयालम लिपि (ग्रन्थ लिपि से विकसित) का विकास हुआ है। 

6. नागरी लिपि का प्रयोग का प्रयोग काल 8वीं - 9वीं सदी ई. से आरम्भ हुआ।10वीं से 12वीं सदी के बीच इसी प्राचीन नागरी से उत्तरी भारत शाखाएं मिलती हैं पश्चिमी व पूर्वी। पश्चिमी शाखा की सर्वप्रथम/ प्रतिनिधि लिपि देवनागरी लिपि है। 

देवनागरी लिपि का नामकरण 

1. देवनागरी लिपि को 'लोक नागरी' और हिंदी लिपि भी कहा जाता है। 

2. देवनागरी का नामकरण विवादस्पद है।  ज्यादातर विद्वान गुजरात नागर ब्राम्हणों से इसका सम्बन्ध जोड़ते हैं।   मानना है  गुजरात सर्वप्रथम प्रचलित होने से वहां  पण्डित वर्ग के नाम से इसे 'नागरी' कहा गया। अपने अस्तित्व में आने  तुरंत बाद इसमें देवभाषा संस्कृत को लिपिबद्ध किया इसलिए 'नागरी' में 'देव' शब्द जुड़ गया और बन गया 'देवनागरी'।    

देवनागरी लिपि का शुरुआत  

देवनागरी लिपि का उद्धव लगभग 1200 ई. में हुआ। देवनागरी लिपि का जन्म संस्कृत लिपि से हुआ है। संस्कृत लिपि भारत की विशाल इतिहासिक संस्कृति और धर्म का मुख्य हिस्सा है। इसका प्रयोग भारतीय संस्कृति के अंतर्गत होता है और इसका उदय कठिन से अनुमानित किया जा सकता है। 

कुछ स्थानों पर इसे पूर्वज संस्कार की आधारशिला माना जाता है। लेकिन इसका संपूर्णत: समयबद्ध इतिहास नहीं है और इसका विस्तार भारत और आसपास के अन्य देशों में हुआ है। संस्कृत लिपि से ही देवनागरी लिपि भी उदय हुआ है, जो कि धर्मीय ग्रंथों के लिए लिखने का प्रयोग करती है।

देवनागरी लिपि का स्वरूप 

1. यह लिपि बायीं ओर से दायीं ओर लिखी जाती है। जबकि फ़ारसी लिपि (उर्दू, अरबी, फ़ारसी, भाषा की लिपि) दायीं ओर से बायीं ओर लिखी जाती है। 

2. यह अक्षरात्मक लिपि है जबकि रोमन लिपि (अंग्रेजी भाषा की लिपि) वर्णात्मक लिपि है। 

देवनागरी लिपि की विशेषताएं 

देवनागरी लिपि भारत की स्थापित होने के साथ ही भारत में ही नहीं, बल्कि विभिन्न अन्य देशों में भी प्रचलित है। इसलिए देवनागरी लिपि में ही नहीं, बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं के शब्दों को भी लिखा जाता है।

देवनागरी लिपि में लिखे जाने वाले शब्द हिंदी, मराठी, तेलुगू, केन्यम, तमिल, बंगाली, उड़ीसा, गुजराती, मलयालम, कुम्भ आदि भाषाओं में से हो सकते हैं।

देवनागरी लिपि में अधिकांश शब्द संस्कृत शब्दों से लिये जाते हैं, लेकिन इसमें अंग्रेजी, फ़्रेंच, स्पेनिश आदि अन्य भाषाओं के शब्दों का भी उपयोग होता है। 

देवनागरी लिपि एक भारतीय लिपि है, जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में लिखी जाती है। इसकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

1. देवनागरी लिपि एक वर्णानुक्रम से है, जो मूलतः संस्कृत भाषा में लिखी जाती है।

2. इसमें अल्फाबेट का उपयोग नहीं होता है, इसलिए इसके अक्षर स्पष्ट और सुंदर होते हैं।

3. इसमें प्रत्येक अक्षर का अपना स्वतंत्र अक्षर होता है, जो अलग-अलग शब्दों में उपयोग किया जाता है।

4. इसमें विभिन्न वर्ण और वर्णमालाओं का उपयोग होता है, जो संस्कृत में लिखी जाने वाली शब्दों को वर्णनकारी में प्रदान करते है

देवनागरी लिपि के गुण 

1. एक ध्वनि के लिए एक ही वर्ण संकेत 

2. एक वर्ण संकेत के अनिवार्यतः एक ही ध्वनि व्यक्त 

3. जो ध्वनि का नाम यही वर्ण का नाम 

4. मूक वर्ण नहीं 

5. जो बोला जाता है वही लिखा जाता है। 

6. एक वर्ण से दूसरे वर्ण का भ्रम नहीं होता है। 

7. उच्चारण के सूक्ष्मतम भेद को भी प्रकट करने की क्षमता 

8. वर्णमाला ध्वनि वैज्ञानिक पद्धति में बिल्कुल अनुरूप 

9. प्रयोग बहुत व्यापक (संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली की एकमात्र लिपि)

10. भारत में अनेक लिपियों के निकट है। 

देवनागरी लिपि का दोष

1. कुल मिलाकर 403 टाइप होने के कारण टंकन, मुद्रण में कठिनाई 

2. शिरोरेखा का प्रयोग अनावश्यक अलंकरण के लिए 

3. अनावश्यक वर्णों (ऋ, ॠ, लृ, ॡ, ष) आज इन्हे कोई शुद्ध उच्चारण के साथ उच्चरित नहीं कर पाता)

4. द्विरूण वर्ण (अ, क्ष, त, 6 छ, झ, राा, ण, श, ल ल, इत्यादि का भ्रम होना)

5. समरूप वर्ण (ख  मे  र  व  का,  ध  में  घ  का,  म  में  भ  का भ्रम होना)

6. वर्णो के संयुक्त करने की कोई निश्चित व्यवस्था नही 

7. अनुस्वार और अनुनासिकता के प्रयोग में एकरूपता का अभाव 

8. त्वरापूर्ण लेखन नहीं क्योंकि लेखन में हाथ बार-बार उठाना पड़ता है। 

9. वर्णो के संयुक्तिकरण में 'रे' के प्रयोग को लेकर भ्रम की स्थिति 

10. इ  की मात्रा (ि ) का लेखन वर्ण के पहले पर उच्चारण वर्ण के बाद 

देवनागरी लिपि कितनी हैं ?

देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा के सभी वर्ण शामिल हैं। हिन्दी भाषा में कुल 52 अक्षर होते हैं, जिनमें से 32 स्वर और 20 व्यंजन होते हैं। सभी ये अक्षर देवनागरी लिपि में शामिल हैं। इसलिए, देवनागरी लिपि 52 अक्षरों से मिलती है।

देवनागरी कैसे पढ़ते हैं ?

देवनागरी लिपि में हिन्दी भाषा के सभी अक्षर शामिल हैं और इन्हें संस्कृत लिपि के अनुसार लिखा गया है। इसलिए, जो लोग संस्कृत लिपि सीखने का अनुभव हैं, वे देवनागरी लिपि भी सही ढंग से पढ़ सकते हैं। हालांकि, जो लोग संस्कृत लिपि से अनुभव नहीं हैं, वे इसे पढ़ने के लिए सीख सकते है। देवनागरी लिपि को संस्कृत लिपि के अनुसार पढ़ा जाता है, जो कि निम्नलिखित ढंग से होता है:

1. स्वरों को संस्कृत लिपि के अनुसार लिखा जाता है। जैसे कि हिन्दी में 'क' का स्वर संस्कृत में 'क' होता है।

2. उच्चारण की जानकारी के लिए देवनागरी में अक्षरों के ऊपर स्थान होती है। जैसे कि एक वर्ण के ऊपर कान लगाए जाने पर इसे ऊच्चारण से हस्ताक्षर में लिखा जाता है।

3. संज्ञाओं का संज्ञापद बनाने में संज्ञापदरूप का उपयोग किया जाता है। जैसे कि संज्ञापदरूप 'अम्ब' का उपयोग संज्ञा 'अम्ब' को बनाने के लिए किया जाता है।

4. संज्ञाओं के संज्ञापद बनाने में स्त्रीपद संज्ञापदरूप का उपयोग किया जाता है। जैसे कि स्त्रीपद संज्ञापदरूप 'अम्बा' का उपयोग संज्ञा 'अम्ब' को स्त्रीपद में बनाने के लिए किया जाता है।

5. संज्ञाओं के संज्ञापद बनाने में वर्णपदरूप का उपयोग किया जाता है। जैसे कि वर्णपदरूप 'अम्बित' का उपयोग संज्ञा 'अम्ब' को वर्णपद में बनाने के लिए किया जाता है।

6. विशेषणों का उपयोग संज्ञाओं को विशेषण देने के लिए किया जाता है। जैसे कि विशेषण 'सुन्दर' का उपयोग संज्ञा 'हस्त' को सुन्दर बनाने के लिए किया जाता है।

देवनागरी लिपि में किये गये सुधार 

1. बाल गंगाधर का 'तिलक फांट' (1904 - 26) 

2. सावरकर बंधुरों का 'अ  की बारहखड़ी' 

3. श्याम सुन्दर दास का पंचमाक्षर के बदले अनुस्वार के प्रयोग का सुझाव 

4. गोरख प्रसाद का मात्राओं को व्यंजन के बाद दाहिने तरफ अलग रखने का सुझाव (जैसे, कुल-क ु  ल)

5. श्री निवास का महाप्राण वर्ण के लिए अल्पप्राण के नीचे  s चिन्ह लगाने का सुझाव 

6. हिंदी साहित्य सम्मलेन का इंदौर अधिवेशन और काका कालेलकर के संयोजकत्व में नागरी लिपि सुधार समिति का गठन (1935) और उसकी सिफारिशें 

7. काशी नगरी प्रचारिणी सभा द्वारा अ  की  बाहरखड़ी और श्री निवास के सुझाव को अस्वीकार करने का निर्यण (1945) 

8. उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा गठित आचार्य नरेंद्र देव समिति का गठन (1947) और उसकी सिफारिशें 

9. शिक्षा मंत्रालय के देवनागरी लिपि सम्बन्धी प्रकाशन..... 'मानक देवनागरी वर्णमाला' (1966 ई.),  ' हिंदी वर्तनी की मानकीकरण' (1967 ई.), देवनागरी लिपि तथा वर्तनी का मानकीकरण (1983 ई.) आदि। 


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